संदेश

संदेशा


जा रे परिंदे जा, ले जा संदेशा मेरा, जा तू उसके धाम कह आ मेरा नाम ।

बताना उसको नाम हमारा, बताना उनको हाल हमाराः
 कहना हर रोज़ खाता, पीता, रोता, है, आपको याद करके सोता है;
मस्त मोला जीने वाला अब अंधकार में जीता है;
 सारे काम धंधे छोड़ के आपको ख़त लिखता है।

कहना की दूर होके भी उसकी यादें पास है,
कुछ गलत न कर बैठे की वोह किसी की खास है;
होगी मुलाकात दोबारा दिल में आस है,
भले ही आप हमसे कितनी भी नफरत करले, दिल तोह आप ही के पास है।

ओ परिंदे कह के यह, देखना आँखे उनकी लगे व्यथित तोह कहना देना की;

बिन पानी के मछली हो गए है हम, 
उछलते, छटपटाते. हर घडी, हर पल, मर रहे है हम; 
Samandar तोह बस नाम के है, रस हो आप हमारा, 
कैसे होगा मिलन आपसे, मै ठहरा प्रशांत बेचारा |

और सुनो परिंदे कही पता न भूल जाना तुमः
 किसी और को यह सन्देश सुना न आना तुम ।
 की पहले ही इस समाज ने हमे लांचन समझ
 रखा है, कही काल के द्वार खोल ना आना तुम ।
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खोलो खिड़की संदेशा आया है 
ना प्रेम पत्र, न माफी पत्र, की बस सन्देश आया है; 
खोलो खिड़की सन्देश आया है।

(सन्देश सुनाने के बाद)

देखा परिंदे ने आँखों कोः लगी व्यथितः पर रोक न पाया खुद को; और कहा:

आपकी यादों का ज्वर लिए भटकता है;
 आपकी बातों का नशा करते दीखता है; 
कहता है की, ना दो दवा उतरेगा यह ज्वर नहीं; 
और जो यादों का यह ज्वर उतरा, बचेंगे हम नहीं।

आपके होठों को सुखाना नहीं चाहता;

पर आपके माथे को रस से भरना चाहता है। 
आपको छूना नहीं चाहताः पर आपको बाहों में भरना चाहता है। 
बीन देखे जी भर गया उसका, पर आपकी मुस्कान का दीवाना वोह।
 आपकी नफरत देख दिल से पूछे, "माफ़ करेगी क्यों?!"

आपकी याद दिलाके, दुनिया उसे घायल कर देती है; 
शाम को लौट के हमसे पूछता है की, "वोह तोह सही सलामत रहती है?!"
 की रस आप Samandar वोह, बाकि आपकी समझदारी है। 
कहके उड़ना चाहा परिन्द पर उद्द ना पाया, पूछों क्यों? 
क्युकी अब उनकी बारी है.......

                                       ——Samandar

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